यूपी की राजनीति में BSP का मास्टरस्ट्रोक?
मायावती का 9 अक्टूबर का फैसला बदल सकता है 2027 के चुनावी समीकरण
लखनऊ, सितम्बर 2025।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में सुस्त पड़ी बहुजन समाज पार्टी (BSP) एक बार फिर बड़ा खेल करने की तैयारी में है। पार्टी सुप्रीमो मायावती आगामी 9 अक्टूबर को एक महत्वपूर्ण फैसला लेने जा रही हैं, जिसे लेकर न सिर्फ BSP कार्यकर्ताओं बल्कि पूरे राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। माना जा रहा है कि यह कदम 2027 के विधानसभा चुनाव तक चुनावी समीकरणों में बड़ा बदलाव ला सकता है।
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9 अक्टूबर क्यों है अहम?
9 अक्टूबर को BSP संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ के रामाबाई मैदान में विशाल रैली होने जा रही है।
यह रैली BSP के लिए राजनीतिक पुनर्जागरण का संदेश हो सकती है।
2021 के बाद यह पहली बार होगा जब BSP इतनी बड़ी ताकत के साथ मैदान में उतरेगी।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह आयोजन SP और BJP दोनों के लिए चुनौती साबित हो सकता है।
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संगठन को नया रूप
मायावती इस समय पार्टी को बूथ स्तर तक मजबूत और सक्रिय करने में जुटी हैं।
“वन मंडल, वन कोऑर्डिनेटर” नीति पर काम हो रहा है। यानी हर मंडल का एक ही प्रभारी होगा और उसका प्रदर्शन खराब होने पर उसे हटाया जाएगा, बदला नहीं जाएगा।
बूथ स्तर तक ओबीसी भाईचारा समितियाँ, डोर-टू-डोर कैंपेन, और बहुजन स्वयंसेवक फोर्स (BVF) जैसी योजनाएँ शुरू की गई हैं।
पार्टी लगातार कार्यकर्ता शिविर और बैठकों के जरिए गाँव-गाँव, मोहल्ला-मोहल्ला तक पहुँचने की रणनीति बना रही है।
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नए चेहरे और परिवार की एंट्री
हाल ही में BSP सुप्रीमो ने संगठन में बड़े बदलाव किए हैं:
मायावती ने अपने भतीजे अक्ष अनंद को पार्टी का नेशनल कन्वीनर बनाया है। अब संगठन में उनकी स्थिति मायावती के बाद दूसरे नंबर पर मानी जा रही है।
पूर्व सांसद अशोक सिद्धार्थ (अक्ष अनंद के पिता) को पार्टी में फिर से शामिल कर लिया गया है। कुछ महीनों पहले उन्हें बाहर कर दिया गया था, लेकिन सार्वजनिक माफी और समर्पण दिखाने के बाद मायावती ने उनकी वापसी स्वीकार कर ली।
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राजनीतिक असर
BSP का ग्राफ पिछले कुछ वर्षों से लगातार गिरा है, लेकिन इस बार पार्टी ने अपनी संगठनात्मक ताकत और नेतृत्व को नए सिरे से खड़ा करने की ठानी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि 9 अक्टूबर की रैली सफल रहती है, तो BSP का जनाधार दोबारा मजबूत हो सकता है।
इसका सीधा असर 2027 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।
खासकर दलित और ओबीसी वोट बैंक में पार्टी फिर से पकड़ बना सकती है।
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निष्कर्ष
यूपी की राजनीति में BSP को अब तक कमजोर खिलाड़ी माना जा रहा था, लेकिन मायावती की 9 अक्टूबर की तैयारी ने सियासी हलचल तेज कर दी है।
क्या यह रैली BSP के पुनर्जन्म का आगाज़ साबित होगी?
क्या मायावती एक बार फिर राजनीतिक समीकरणों को बदलने वाली मास्टरस्ट्रोक खिलाड़ी साबित होंगी?
इन सवालों का जवाब आने वाले महीनों में साफ होगा, लेकिन इतना तय है कि 9 अक्टूबर को लखनऊ की रैली पर पूरे देश की निगाहें होंगी।
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