🗳️ बिहार में SIR को लेकर मचा सियासी घमासान – क्या 2024 का जनादेश खतरे में है?

🗳️ बिहार में SIR को लेकर मचा सियासी घमासान – क्या 2024 का जनादेश खतरे में है?

📅 25 जुलाई 2025 | UP9 News ब्यूरो

बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। इस बार विवाद की जड़ है "स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन" (SIR) – यानी मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण। चुनाव आयोग द्वारा SIR की घोषणा के बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है। विपक्षी दलों ने इसे 2024 के लोकसभा चुनाव के जनादेश को कमजोर करने की साज़िश करार दिया है, वहीं चुनाव आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।


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🔍 क्या है SIR और क्यों हो रहा विरोध?

"स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन" एक सामान्य प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूचियों को अपडेट किया जाता है। इसमें मृत मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं, नए मतदाताओं को जोड़ा जाता है और दोहराव या फर्जी नाम हटाए जाते हैं।

लेकिन इस बार मामला राजनीतिक रंग ले चुका है। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि:

यह प्रक्रिया 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद क्यों शुरू हुई?

कहीं ये वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करने की चाल तो नहीं?

मतदाता सूची से संप्रदाय विशेष के नाम हटाने की कोशिश हो रही है।



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🗣️ किसने क्या कहा?

🔴 राजद, कांग्रेस और वाम दलों का दावा:

> “यह कदम 2024 के जनादेश को नकारने की साजिश है। मतदाता सूची को छेड़छाड़ कर NDA को फायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।”



🔵 NDA की प्रतिक्रिया:

> “SIR एक तकनीकी प्रक्रिया है, विपक्ष हार की हताशा में सवाल उठा रहा है।”



🗨️ मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार का जवाब:

> “क्या मृत वोटर, विदेशी नागरिक या फर्जी नाम सूची में रहने चाहिए? SIR पारदर्शिता बढ़ाने के लिए है, न कि चुनाव परिणाम बदलने के लिए।”




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📌 JD(U) MP को नोटिस

JDU के ही एक सांसद ने SIR पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे 2024 की वैधता पर प्रश्न उठ सकता है। पार्टी ने उन्हें नोटिस भेजते हुए स्पष्टीकरण मांगा है। इससे NDA के भीतर भी खींचतान के संकेत मिल रहे हैं।


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🔎 असली चिंता क्या है?

बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों पर टिकी है। मतदाता सूची में बदलाव इन समीकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।

विपक्ष को आशंका है कि यह प्रक्रिया एक खास वर्ग या समुदाय को निशाना बना सकती है।

वहीं NDA इसे चुनाव सुधार और ईमानदारी की दिशा में कदम बता रहा है।



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📊 क्या हो सकता है असर?

बिंदु संभावित असर

SIR में बदलाव जातीय और क्षेत्रीय समीकरण बिगड़ सकते हैं
विपक्ष का विरोध आगामी विधानसभा चुनावों में मुद्दा बन सकता है
NDA की रणनीति खुद के भीतर विरोध झेलनी पड़ सकती है



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✍️ निष्कर्ष

बिहार की राजनीति हमेशा से संवेदनशील रही है और हर छोटी प्रक्रिया को लेकर बड़ी बहस होती है। SIR का मुद्दा एक तकनीकी प्रक्रिया से ज्यादा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। आने वाले दिनों में यह विवाद और भी तूल पकड़ सकता है, खासकर जब राज्य में निकाय या विधानसभा चुनावों की सरगर्मी शुरू होगी।


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📢 आप क्या सोचते हैं? क्या SIR एक ईमानदार प्रक्रिया है या इसके पीछे कोई राजनीतिक चाल छिपी है? अपनी राय नीचे कमेंट करें।

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