अधर्म पर धर्म की विजय ही विजयदशमी का प्रतीक – डा. प्रेमलाल शुक्ल
प्रतापगढ़, ब्यूरो रिपोर्ट । भारतीय संस्कृति पर्वो व उत्सवों की संस्कृति है। पर्वो व उत्सवों की लगातार चलने वाली श्रृंखला के अंतर्गत विजयदशमी का पर्व अधर्म पर धर्म की विजय और शक्ति का प्रतीक पर्व है। विजयदशमी का पर्व मानव में दस प्रकार के पापों को समाप्त करने का पर्व है लेकिन कलयुग के वातावरण में हम सभी कोई न कोई पाप कभी अंजाने में या फिर जानबूझकर करते ही रहते है। विजयदशमी का पर्व नौ दिन के नवरात्रि के साथ संपन्न होता है अर्थात विजयदशमी का पर्व मनाने के पूर्व हिंदू समाज मां दुर्गा के नौ रूपों की वंदना करता है । मान्यता है कि विजयदशमी के दिन अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम ने अपनी वानर सेना के साथ लंकाधिपति रावण का वध किया था और रामराज्य की नींव रखी थी। इतिहास में यह भी मान्यता है कि विजयदशमी के ही दिन महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज ने मुस्लिम आततायी औरंगजेब के खिलाफ विजयी प्रस्थान किया था और हिंदू समाज का संरक्षण किया था। अजगरा के कटहरिया निवासी डॉ प्रेमलाल शुक्ल जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गीता के 18वे अध्याय के अंतिम श्लोक में कहा है कि – ‘यत्र योगेस्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीविजयो भूतिर्धुवा नीतिर्मतिर्मम।’ जहाँ पर परमात्मा कृष्ण है और जहाँ पर विस्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी अर्जुन है वही पर श्री विजय बिभूत लक्ष्मी विद्यमान है।