श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर अमर कथा का विस्तार से वर्णन करते - पं. शेषधर मिश्र अनुरागी महराज

श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर अमर कथा का विस्तार से वर्णन करते – पं. शेषधर मिश्र अनुरागी महराज

प्रतापगढ़, ब्यूरो । श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर बाबा घुश्मेश्वरनाथ धाम के पवित्र और पावन धरा से पधारे परम पूज्य गुरु पं. रामसुमेर मिश्र शास्त्री के सानिध्य में श्री शेषधर मिश्र अनुरागी महाराज ने नींवी खुर्द गारापुर प्रयागराज में छह दिसंबर से चल रहे द्वितीय दिवस पर भागवत कथा में अमर कथा एवं शुकदेव जी के जन्म का वृतांत विस्तार से वर्णन किया। कथा के द्वितीय दिवस पर सैकड़ों की संख्या में भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया। द्वितीय दिवस के कथा की शुरुआत भागवत आरती और संसार की शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। पूज्य श्री शेषधर मिश्र अनुरागी जी महाराज श्री ने कहा कि भागवत और कृष्ण में कोई भेद नहीं हैं हमको भागवत और कृष्ण में भेद नहीं करना चाहिये। उन्होने कहा कि संतों की सेवा में जो आनंद है वो किसी ओर चीज में नहीं। महाराज श्री ने बताया की गरुण पुराण में लिखा है कि आप देवताओं से पहले अपने पितरो को मना लो क्यूंकि देवता तो आपको आपके कर्म अनुसार फल देते है लेकिन अगर पितृ एक बार खुश हो जाए तो वह वो दे देते है जो तुम्हारे भाग्य में भी नहीं होता और अगर पितृ अप्रसन्न हो जाए तो वो भी छीन लेते है। पूज्य श्री शेषधर मिश्र अनुरागी जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा की भागवत वही अमर कथा है जो भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी। कथा सुनना भी सबके भाग्य में नहीं होता जब भगवान् भोलेनाथ से माता पार्वती ने उनसे अमर कथा सुनाने की प्रार्थना की तो बाबा भोलेनाथ ने कहा की जाओ पहले यह देखकर आओ की कैलाश पर तुम्हारे या मेरे अलावा और कोई तो नहीं है क्योकि यह कथा सबके नसीब में नहीं है। माता पूरा कैलाश देख आई पर शुक के अपरिपक्व अंडो पर उनकी नजर नहीं पड़ी। भगवान शंकर जी ने पार्वती जी को जो अमर कथा सुनाई वह भागवत कथा ही थी। लेकिन मध्य में पार्वती जी को निद्रा आ गई। और वो कथा शुक ने पूरी सुन ली। यह भी पूर्व जन्मों के पाप का प्रभाव होता है कि कथा बीच में छूट जाती है। भगवान की कथा मन से नहीं सुनने के कारण ही जीवन में पूरी तरह से धार्मिकता नहीं आ पाती है। जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी लीलाओं में रमना चाहिए। गोविंद के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म, संत, मां-बाप और गुरु की सेवा करो। जितना भजन करोगे उतनी ही शांति मिलेगी। संतों का सानिध्य हृदय में भगवान को बसा देता है। क्योंकि कथाएं सुनने से चित्त पिघल जाता है और पिघला चित ही भगवान को बसा सकता है। श्री शुक जी की कथा सुनाते पूज्य श्री शेषधर मिश्र अनुरागी जी महाराज ने बताया कि श्री शुक जी द्वारा चुपके से अमर कथा सुन लेने के कारण जब शंकर जी ने उन्हें मारने के लिए दौड़ाया तो वह एक ब्राह्मणी के गर्भ में छुप गए। कई वर्षों बाद व्यास जी के निवेदन पर भगवान शंकर जी इस पुत्र के ज्ञानवान होने का वरदान दे कर चले गए। व्यास जी ने जब श्री शुक को बाहर आने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि जब तक मुझे माया से सदा मुक्त होने का आश्वासन नहीं मिलेगा मैं नहीं आऊंगा। तब भगवान नारायण को स्वयं आकर ये कहना पड़ा की श्री शुक आप आओ आपको मेरी माया कभी नहीं लगेगी ,उन्हें आश्वासन मिला तभी वह बाहर आए। यानि की माया का बंधन उनको नहीं चाहिए था। पर आज का मानव तो केवल माया का बंधन ही चारो ओर बांधता फिरता है। और बार-बार इस माया के चक्कर में इस धरती पर अलग-अलग योनियों में जन्म लेता है l तो जब आपके पास भागवत कथा जैसा सरल माध्यम दिया है जो आपको इस जनम मरण के चक्कर से मुक्त कर देगा और नारायण के धाम में सदा के लिए आपको स्थान मिलेगा। श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस पर जड़भरत संवाद, नरसिंह अवतार, वामन अवतार का वृतांत सुनाया जाएगा। श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन नीरज तिवारी, श्रीकांत त्रिपाठी एवं राधाकांत त्रिपाठी द्वारा किया जा रहा है। कथा पंडाल में यजमान में श्री लक्ष्मीकांत त्रिपाठी एवं श्रीमती कुशलता देवी सहित क्षेत्र के एवं दूर-दराज से आए कई गणमान्य अतिथियों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिती दर्ज करवाई ।

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